सतरंगी जीवन #कहानीकार प्रतियोगिता लेखनी कहानी -16-Aug-2023
भाग-५
सत्रह साल की कल्याणी जब अपने पति के साथ पहली बार दिल्ली आई, तो यहां की चकाचौंध देखकर हैरान थी। शुरुआत में यहां की बोली समझने बोलने में दिक्कत हुई पर बहुत ही जल्द वो दिल्ली के रंग में रंग गई।
पति दिन भर काम की खोज में दिल्ली की सड़क नापा करते। कभी प्रींटिग प्रैस में कोई काम मिल जाता तो दिन भर की कमाई कल्याणी जी के हाथ में लाकर रख देते।
उन्हें लिखने पढ़ने का बहुत शौक था, पर शौक से पेट तो नहीं भरता उसके लिए तो कमाना ही पड़ता है।
कल्याणी जी गाँव के एक बड़े जमींदार परिवार की सबसे छोटी बेटी थी। उन दिनों शादी विवाह कम उम्र में ही हो जाता था। कल्याणी जी भी मात्र ११ वर्ष की ही थी और रमलेश जी १४ वर्ष के जब वो दोनों विवाह बंधन में बंधे।
देश की आजादी के एक साल बाद ही तो रमलेश अपने प्यार को शादी के पवित्र रिश्ते में ला पाया था। बचपन का प्यार थी नी उसका। रमलेश की बड़ी भाभी की सबसे छोटी बहन।
जब बड़े भाई की शादी हुई चार साल का ही तो था रमलेश और कल्याणी साल भर की। दोनों परिवार जाने माने रईस की श्रेणी में आते थे।
कल्याणी के पिता जमींदार और रमलेश के पिता दरभंगा राज के तहसीलदार। एक की चार बेटियां और एक बेटा और दूसरे की चार बेटे और एक बेटी। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी उन्होंने अपनी मित्रता को और प्रगाढ़ करने के लिए कई बार बातों ही बातों में कहा कि किसी और के यहां अपने बच्चों को देने या कहीं और रिश्ता जोड़ने से अच्छा होगा हम मित्र के साथ साथ समधी भी बने रहें।
पर जैसा कि हमेशा होता आया है मित्र जब समधी बन जाता है तो लाख बुराईयां आ जाती है उनमें। वहीं हाल इन दोनों परिवार का भी हुआ। बड़े बेटे के विवाह के कुछ समय बाद ही रमलेश के पिता की आर्थिक स्थिति कमजोर होती गई, उनकी नौकरी जाती रही। ऐशो आराम में रहने की आदत वाला यह परिवार अब आर्थिक तंगी का शिकार था जिसका कभी प्रत्यक्ष तो अप्रत्यक्ष रूप में ताना घर की बड़ी बहू यानि कल्याणी की बड़ी बहन को ही सुनना पड़ता।
धीरे धीरे दोनो मित्रों में कटुता आती गई पर दोनों परिवार के सबसे छोटी संतानों के बीच नजदीकियां बढ़ती गई।
जब भी रमलेश अपनी भाभी के मायके जाता तो वहां कल्याणी ही उसके लिए दौड़कर पानी लाती और अपनी छोटी सी सूती साड़ी के आंचल में कभी अमरूद तो कभी लीची छुपाकर रमलेश को देती। दोनों खूब खेलते, घंटों खेत खलिहान में समय बिताते। रमलेश प्रकृति और अपने पास बैठी कल्याणी को देख कविताएं लिखना पाँचवीं कक्षा तक पहुंचते ही सीख गया था।
कल्याणी भी सिलाई कढ़ाई बहुत छोटी उम्र में ही सीख रही थी। वो रमलेश के लिए तरह-तरह के डिजाइन बना रुमाल बनाती ,जिसे वो बहुत संभाल कर रखता।कभी उसके सफ़ेद कुर्ते पर उसके नाम का आर लिख रेशमी धागे से कढ़ाई कर देती।
रमलेश गांव से दूर अपनी बुआ के पास शहर में रहकर पढ़ता, उसकी अन्य विषयों के साथ साथ अंग्रेजी पर भी पकड़ बहुत अच्छी थी।वो जब गाँव अपनी भाभी के पास आता तो कल्याणी को भी लिखना पढ़ना सिखाता। उन दिनों लड़कियों को स्कूल भेजने की प्रथा नहीं थी, लड़कियां पढ़ लिख कर क्या करेंगी ऐसी सोच रखने वाले समाज में ही रमलेश की सोच सबसे अलग थी।
लड़कियों का पढ़ना लड़कों से ज्यादा जरूरी है,वो हमेशा यही मानता।उसे लगता अगर मां पढ़ी लिखी होती तो हमको पढ़ने के लिए इस तरह दूसरों की दया पर ना रहना पड़ता।
जब बुआ के ससुराल वाले उसके साथ बुरा व्यवहार करते तो उसे बहुत तकलीफ़ होती। घर में आर्थिक तंगी भी एक मुख्य कारण था रमलेश को गांव से दूर अपनी बुआ के पास भेजने का।उसकी बुआ उसे बहुत मानती थी पर अपने ससुराल में ज्यादा दिन अपने भतीजे को साथ नहीं रख पाएगी इसका भी उसे अच्छे से पता था।उसकी सास का रमलेश के दो समय खाने पर हमेशा ताने मारना, कचोटता था बुआ को। उनकी अपनी को संतान नहीं थी । वो अपने छोटे भतीजे को अपने बेटे की तरह हमेशा अपने पास ही रखना चाहती।पर सास कहती," भाई का बेटा कभी अपना नहीं हो सकता।आज जरूरत है तो भाई ने भेज दिया हमारे पल्ले बांध दिया। "
बुआ की सास हमेशा कामों में रमलेश को उलझाए रखती जिससे दिन में पढ़ना नामुमकिन ही होता।
उसकी बुआ अपने भतीजे पर होते बुरे व्यवहार को देख आहत होती और रसोई घर में तो कभी पूजाघर में बैठ रोती।अपनी बुआ को रोते देख रमलेश भी रो उठता।
रमलेश सारी बातें कल्याणी को बताता, तो उसका मन भी तो उठता।
अपने भोलेपन से कहती,"आप चिंता मत करिए मैं आपके लिए खाना बनाया करूंगी। आपको बुआ की सास की झिड़कियां नहीं सुननी पड़ेगी।"
"तुझको खाना बनाना आता है।कब सीखा तूने खाना बनाना?"
" रसोई घर के दरवाजे पर बैठ माँ को और काकी को देखती हूँ तो मुझे लगता है मैं भी कर पाऊंगी। एक दिन जब माँ बाबूजी मंदिर गए थे, मैंने खुद से चूल्हा जलाया था और भात दाल बनाया।"
नौ साल की कल्याणी खाना बनाना सीख लेना चाहती थी जिससे रमलेश को कभी भूखे ना रहना पड़े।
उन दिनों कुंवारी कन्याओं को रसोई घर और पूजा घर में प्रवेश की इजाजत भी नहीं होती थी। एक तो छोटी उम्र और गांव के लोगों के अजीबोगरीब नियम कानून। किसी पुरुष के खाते समय या उसके खाने को कुंवारी कन्या छू भी दे तो खाना अछूत हो जाता था और आदमी उस खाने को नहीं खाते।
लड़कियों को शादी के बाद जब तक गौना नहीं होता तब ट्रैनिंग दी जाती रसोई घर से लेकर पूजा घर के सारे कामों की। शादी कम उम्र में होती थी तो गौना भी तीन , पाँच या सात साल बाद ही होता।तब तक लड़कियां कुशल गृहिणी बनने की तैयारी करती।
पर यहां कल्याणी को तो कुछ ज्यादा ही जल्दी थी सब कुछ सीख लेने की। उसे रमलेश के साथ नई दुनिया जो बसानी थी।
कल्याणी जब ग्यारह साल की हुई तो उसके लिए रिश्ते खोजे जाने लगे जिसकी खबर रमलेश को जब पड़ी तो उसने दोनों के पिता को अपने किए वचन की याद दिलाई । इस बीच रमलेश के मझले और संझले दोनों भाई और कल्याणी की दोनों बहनों की शादी अच्छे घर वर देखकर कर दी गई थी, क्योंकि अब तहसीलदार साहिब तो कर्जे में डूबे हुए थे तो उनके यहां अपनी बेटियों को कैसे देते जमींदार साहिब जो अब गांव के मुखिया बन गए थे। उन्हें तो रमलेश का अपने घर आना भी बिलकुल पसंद नहीं था पर उनकी पत्नी यानी कल्याणी की माँ को रमलेश बहुत पसंद था और अपनी भाभी मां की तो आंखों का तारा था वो।
दोनों परिवार अब इस शादी के खिलाफ थे।
कैसे मनाया रमलेश ने दोनों परिवारों को अपनी शादी के लिए... जानने के लिए जुड़े रहिए इस कहानी से..
****
©
कविता झा'काव्य 'अविका'''
कहानी से जुड़े रहने के लिए हृदय तल से आभार।
#लेखनी
#कहानीकार प्रतियोगिता
Babita patel
03-Sep-2023 09:45 AM
Amazing part
Reply